🌻दुनिया में कितना गम है, मेरा ग़म कितना कम है- ईश्वर को कोसने वाले एक परेशानहाल व्यक्ति को हुआ आत्मबोध🌻

🌻एक व्यक्ति अपनी परेशानियों से जूझ रहा था. उसे लगता कि वही संसार का सबसे दुखी व्यक्ति है.  

उसे प्रभु से इस बात की बड़ी शिकायत थी कि प्रभु ने संसार के सारे दुख उसके हिस्से दे दिए और फिर कान में तेल डालकर सो गए हैं. सोते-जागते प्रभु से प्रार्थना करता और फिर कोसता रहता. 

एक दिन उसने सोने से पहले प्रार्थना कि प्रभु यदि मेरे दुख मिटा नहीं सकते तो कम से ऐसे व्यक्ति के दुखों से तो बदल दो जो मेरे से कम दुखी हो तो मुझे कुछ राहत मिले. 

उस रात उसे सपने में भगवान दिखे. भगवान बोले- अपने कष्टों को विस्तार से कागज पर लिखो, एक गठरी बनाओ और शहर के मुख्य द्वार पर टांग आओ.

सुबह उसने भगवान के आदेश के मुताबिक गठरी बनाई और चौराहे पर पहुंचा. वहां उसने देखा कि पहले से ही लोगों लंबी कतार है जो दुखों की गठरी लिए पहुंचे हैं. आकाशवाणी हुई कि सभी अपनी गठरी अलग-अलग खूंटी में टांग दें.

वहां बेहिसाब खूंटिंया थी. सभी ने अपनी गठरी टांगी और ईश्वर के आदेश की प्रतीक्षा करने लगे. फिर आकाशवाणी हुई. सभी अपने से हल्की गठरी अंदाजे से उठा लें. अब उन्हें वही दुख भोगने होंगे जो उनकी चुनी नई गठरी में दर्ज होंगे.

सबके साथ वह व्यक्ति भी नई गठरी चुनने भागा. काफी देर तक अंदाजा लगाता रहा. उसे डर था कि कहीं नई गठरी ऐसी न हो जिसमें पहले से भी ज्यादा दुख हों. 

वह कहीं किसी ऐसे व्यक्ति की गठरी न उठा ले जो उससे भी ज्यादा दुखी हो, जो उसे और तोड़ दें. फिर उसे लगने लगा कि कम से कम अपने दुखों से परिचित है उन्हें झेलने का आदी हो गया है. कहीं नए दुख ज्यादा पीड़ादायक न हो जाएं.

ऐसे विचारों में खोया वह एक के बाद एक गठरी के सामने से गुजरता लेकिन तय नहीं कर पाया कि कौन सी गठरी चुनी जाए. आखिरकार उसने अपनी गठरी ही उठा ली और चल पड़ा. उसने उनका पहले से ज्यादा मजबूती से सामने करने की ठान ली.

सच में सबको अपना दुख ज्यादा बड़ा और ज्यादा पीड़ादायक लगता है. बेहतर है कि हम यह सोचें- दुनिया में कितना गम है, मेरा ग़म कितना कम है.

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