जीवन में असली उड़ान अभी बाकी है,
हमारे इरादों का इम्तिहान अभी बाकि है,
अभी तो नापी है सिर्फ मुट्ठी भर जमीन,
अभी तो नापने के लिए सारा आसमान बाकी है.
दुनिया ने सिर्फ और सिर्फ उन्हें याद रखा जिन्होंने समाज के लिए कुछ अच्छा या शुभ काम किया वर्ना हमने तो अपनी पिछली पीढ़ियों (बुजुर्गों) को भी याद नहीं रखा ...
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मित्रों जिंदगी में यदि कभी भी समाज के लिए अच्छा या शुभ काम करने का कोई भी विचार हमारे सामने आये तो उस क्षण को कभी भी हाथ से जाने मत देना, तुरंत उठो और कर दो क्योँकि हम लोगों के दिमाग में समाज के लिए करने के अच्छे विचार बहुत काम आते हैं. इसमें अगर हमने थोड़ी सी भी देर कर दी तो ये विचार अपने आप ही गुम हो जायेंगे और इसके बाद फिर हम भी अपनी जिंदगी की समस्याओं में कहीं खो जाते है और अच्छे काम करने का हमारा सपना, सपना बनकर ही हमारे साथ ऊपर चला जाता है.
मित्रों दुनिया ने सिर्फ और सिर्फ उनको याद किया है जिन्होंने समाज के लिए कुछ किया है जैसे की गौतम बुद्ध, गांधीजी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, डॉ अब्दुल कलाम, डॉ भीमराव अंबेडकर, रानी लक्ष्मी बाई, स्वामी विवेकानंद, शिवाजी महाराज आदि और भी बहुत से नाम हैं आप याद करके देख सकते हैं. सोचिये क्या इन सभी ने अपने लिये काम किया था ? जी नहीं इन सभी ने एक पूरे समाज को नज़र में रख कर काम किया था. इन सभी लोगों ने समझ लिया था कि - "जिंदगी की सुंदरता इस बात में नहीं है की हम कितने ख़ुश रहते हैं, बल्कि इस बात में है कि कितने लोग हमसे खुश रहते हैं", ये बात गौर करने वाली है. पीढ़ियों तक नाम याद रखवाना है तो जिस समाज से सब कुछ लिया है उस समाज को निस्वार्थ रूप से सज्जनतापूर्वक लौटाना ही पड़ेगा, इसमें कोई दो राय नहीं है.
इसलिए मित्रों, नाम उन्ही लोगों का लिया जाता है जो समाज के लिए कुछ करके गए हैं न की जिन्होंने सिर्फ अपने लिए कुछ किया है. हमारा यह सोचना की अगर हम अपनी सात पीढ़ियों के लिए कुछ करेंगे तो सातों पीढ़ियां हमारा गुणगान करेंगी, इस ग़लतफ़हमी को जितना जल्दी हो सके अपने दिमाग से निकाल दें. अपनी सात पीढ़ियों के लिए कुछ जोड़ने वाली हमारी सोच ने हमें इतना self centered बना दिया है कि हम न तो अपना ही भला कर पा रहे हैं और न ही उस समाज को कुछ वापस कर पा रहे हैं, जिस समाज से हमने सब कुछ लिया और सीखा है.
मित्रों सच्चाई यह है कि "नाम सबको चाहिए पर काम सिर्फ अपने लिए होना चाहिए". कौन मना कर रहा है नाम के लिए पर "नाम सिर्फ और सिर्फ तब मिलेगा जब काम सबके लिए किया जायेगा न की सिर्फ अपने लिए, ये बात हमें ध्यान में रखनी ही होगी.
चीन की एक कहावत बड़ी मशहूर है :-
अगर हम 1 वर्ष के लिए सोचते है, तो वो फसल उगाते है.
अगर हम 10 वर्षों के लिए सोचते है, तो वो फल के वृक्ष उगाते है.
और
अगर हम हजारों वर्षों के लिए सोचते हैं, तो समाज के लिए काम करते है.
स्वामी विवेकानंद जी ने भी कहा है कि हम इंसानों को अपनी जिंदगी में "1000 साल" का काम पूरा करना है, मतलब "काम इतना अच्छा हो कि कम से कम वो काम 1000 साल आगे तक चलता रहे".
"हम सभी ने अभी तक इस जिंदगी में कितने बरस का काम पूरा कर लिया है ये तो अपने अपने चिंतन का विषय है".
मित्रों जब आज की पीढ़ी 1-1 हजार साल का काम पूरा करके जाएगी तभी हम अपने आगे आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ छोड़ कर जायेंगे क्योँकि भारत सोने की चिड़िया थी, हमने तो सिर्फ सुना है पर कभी देखा नहीं. क्योँ न हम सभी अपनी जिंदगी में 1000 सालों का काम करके जाएँ जिससे की कम से कम हमारे आगे आने वाली पीढ़ी इस भारत को वैसे ही देख सके जैसा हमारे बुजुर्गों ने हमें बताया है. हम अपने समाज के लिए इतना कर जाएँ कि "हम लोगों के दिलों में बस जाएँ क्योँकि उसके बाद दिमाग में तो लोग खुद ही बसा लेते हैं".
मित्रों सोचिये सोचिये, ऐसे कामों के बारे में सोचिये जो कम से कम 1000 सालों तक चले.
मित्रों क्योँ न आज से ही इसके लिए तैयार हो जाएँ, ये कहते हुए कि :-
जीवन में असली उड़ान अभी बाकी है,
हमारे इरादों का इम्तिहान अभी बाकि है,
अभी तो नापी है सिर्फ मुट्ठी भर जमीन,
अभी तो नापने के लिए सारा आसमान बाकी है.
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