🌻जो पूजे नित्य शिवजी का यह रूप, पावे सुख-सौभाग्य अनूप -- शिवपुराण से🌻

🌻देवाधिदेव शिवशंकर का अर्धनारीश्वर रूप, जो इस चराचर जगत् की उत्तपत्ति का कारण है, का आश्रय लेने से मनुष्य के सकल मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं, क्योंकि इसने परमपिता ब्रम्हा की कामना को पूर्ण किया था। उनका भजन मंगलमय और सर्व सुख-सौभाग्य दाता मना जाता है।

शिवपुराण के अनुसार जब सृष्टिकर्ता ब्रम्हा द्वारा रची गयी सारी प्रजाएँ बिस्तार को प्राप्त नहीं हो रही थी, तब ब्रम्हाजी को बहुत दुःख और चिन्ता हुई। वे व्यग्र हो गए । उसी समय यों आकाशवाणी हुई, " ब्रह्मन् ! अब मैथुनी सृष्टि की रचना करो।" 

यह सुनने के बाद ब्रम्हा जी ने मैथुनी संसार रचने का प्रयास किया, किन्तु उनसे यह सम्भव नहीं हो सका। तब उन्होंने ध्यान लगाया। इससे उन्हें विचार आया कि यह कार्य बिना शिव कृपा से पूर्ण नहीं हो सकता। उन्होंने अविलम्ब भोलेनाथ की आराधना शुरू कर दी । 

उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर कष्टहारी शंकरजी कामदा मूर्ति में प्रविष्ट हो कर अर्धनारीश्वर रूपमें ब्रम्हाजी के सम्मुख प्रकट हो गए। ब्रम्हाजी ने शिवा समेत शिव को आये देख आनन्दित हो उन्हें साष्टांग दण्डवत् किया।

महेश्वर महादेव ने गम्भीर वाणी में कहा, " वत्स प्रजापति ! मैं  तुम्हारे तप से प्रशन्न होकर  तुम्हारे  मैथुनी सृष्टि निर्माण कार्य को सफल बनाऊँगा ।" फिर उन्होने अपने शारीर के अर्धभाग से शिवदेवी को अलग कर दिया। उस परमा शक्ति को देखकर ब्रम्हाजी ने तन्मयता से वन्दना की।

ब्रम्हाजी ने कहा, " मैं अपनी सृष्टि को बढ़ा नहीं पा रहा हूँ, अतः अब स्त्री- पुरुष के समागम से उतपन्न होनेवाली सन्तान के द्वारा इसको बढ़ाना चाहता हूँ। आप कृपाकर इसमें मेरी सहायता करें । इसके साथ ही आप मेरे सर्वसमर्थ पुत्र दक्ष की पुत्री के रूपमें अवतरित हो जाइए ।"

जगजननी महादेवी ने कहा, " तथास्तु- ऐसा ही  होगा ।"  फिर जगदम्बा ने अपनी भौहों के मध्य भाग से आपने ही समान एक शक्ति की रचना की । तदुपरांत शिवादेवी ब्रम्हाजी की मनोकामना पूर्ण कर शिवजी के शरीर में प्रविष्ट हो गयीं,ततपश्चात भोलेनाथ शक्ति समेत अन्तर्ध्यान हो गए। तभी से इस लोक में स्त्री-भाग की कल्पना हुई और मैथुनी सृष्टि चल पड़ी ।

अतः, जो भी मनुष्य इस अर्धनारीश्वर रूप की पूजा- अर्चना करेगा उसके परिवार में सुन्दर और भाग्यवान संतान होंगे और व्यक्ति की सकल कामनाएं मंगलमय ढंग से पूर्ण होंगी ।
 || जय हो भोलेनाथ ||  
 

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