🌻मन चंगा तो कठौती में गंगा, साधु के नाचने से गांव में कैसे हो गई बारिश : एक उपयोगी कथा🌻

🌻किसी गाँव मे एक साधु रहते थे. उनके बारे में विख्यात था कि वह जब भी नाचते  हैं तो उससे प्रसन्न होकर ईश्वर गांव में बारिश कर देते हैं.

गांव में जब भी बारिश की जरूरत होती, तो लोग साधु से अनुरोध करते कि वह नाचें. जब वह नाचने लगते तो बारिश ज़रूर होती.

बात गांव से बाहर जाकर बस गए कुछ बुद्धिजीवियों को पता चली. जब उन्हें यह साधु के नाचने से बारिश की बात पता चली तो वे माखौल उड़ाने लगे.

चार लोग गांव में आए. उन्होंने गाँव वालों को चुनौती दी- हम भी नाचेंगे तो बारिस होगी. यदि हमारे नाचने से बारिश नहीं हुई तो साधु के नाचने से भी नहीं होगी.

गांव वाले अगले दिन सुबह साधु की कुटिया पर पहुंचे और सारी बात कह सुनाई. मुकाबला शुरू हुआ. चारों मेहमानों ने नाचना शुरू किया. आधे घंटे बीते.

पहला व्यक्ति थक कर बैठ गया पर बादल नहीं दिखे. दूसरे ने नाचना शुरू किया. दो घंटे बीतते-बीतते चारों थक कर बैठ गए, पर बारिश नहीं हुई.

अब साधु की बारी थी, उसने नाचना शुरू किया, एक घंटा बीता, बारिश नहीं हुई. साधु नाचता रहा. दो घंटा बीता बारिश नहीं हुई. पर साधु तो रुक ही नहीं रहे थे.

धीरे-धीरे शाम ढलने लगी कि तभी बादलों की गड़गडाहट सुनाई दी और ज़ोरों की बारिश होने लगी.

चारों दंग रह गए. उन्होंने साधु से क्षमा मांगी और पूछा-बाबा भला ऐसा क्यों हुआ कि हमारे नाचने से बारिश नहीं हुई पर आपके नाचने से हो गयी?

साधु ने उत्तर दिया– मैं इंद्र नहीं हूं न ही गांव वाले ऐसे लालची जो बिना वजह ईश्वर से पानी मांगें. इन लोगों के विश्वास से मुझे आत्मविश्वास मिलता है. इसलिए दो बातों का ध्यान में रखकर नाचता हूं.

पहली बात कि अगर मैं नाचूँगा तो बादलों को बरसना ही पड़ेगा और दूसरी यह कि मैं तब तक नाचूँगा जब तक बारिश न हो जाए.

ईश्वर मेरा निश्चय और मेरी नीयत देख रहे थे. मैं मुकाबला जीतने के लिए नहीं, गांव वालों का भरोसा कायम रखने के लिए नाच रहा था.

तुम भी इसी संकल्प और साफ मन से नाचते तो बादलों को स्वतः बरसना ही था.

हमें सफल लोगों की सफलता का चमकदार पहलू तो दिखाई देता है लेकिन उनके पैरों की बिवाइयां नहीं दिखतीं जो उन्होंने सफलता के लिए किए परिश्रम में पाई हैं.

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