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दोस्तों जीवन की 3 मूल आवश्यकताओं में से 1 है जल यानि पानी | इसके बिना कोई भी प्राणी अपने प्राण नहीं बचा सकता...

इस जल को विकासवाद ने जितना दूषित किया है उससे आज हमारे सामने समस्याओं का बिमारियों का अम्बार खड़ा हुआ है. 1 दिन भी हम जल पिए बिना नहीं रह सकते, यह सत्य है और एक दिन में ही हम कितना सारा जल पि जाते हैं.

अगर ये कहा जाए कि जिंदगी में पानी के बिना कुछ भी संभव नहीं है, तो गलत नहीं होगा। प्यास बुझाने के अलावा, खाना बनाने जैसे तमाम काम पानी के बिना संभव नहीं हैं। कई लोगों की नजर में पानी की शुद्धता जरूरी नहीं होती। लेकिन आपकी यह सोच आपके और आपके परिवार के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। नहाने के पानी से लेकर पीने के पानी तक की शुद्धता मायने रखती है। जहां अशुद्ध पानी पीने से असं2य रोगों को निमंत्रण मिलता है, वहीं अशुद्ध पानी से त्वचा संबंधी बीमारियों को न्योता मिलता है। अगर आंकड़ों की मानें, तो पीने के पानी में 2,100 विषैले तत्व मौजूद होते हैं। ऐसे में बेहतरी इसी में है कि पानी का इस्तेमाल करने से पहले इसे पूरी तरह से शुद्ध कर लिया जाए, क्योंकि सुरक्षा में ही सावधानी है।

लेकिन विकासवाद की अंधी दौड़ में हमने इस और ध्यान ही नहीं दिया की हम कौनसा जल पि रहे हैं, कौनसा पीना चाहिए और हमारे शरीर में जो नई बीमारियाँ हैं कहीं उनका कारण यह दूषित जल तो नहीं.

पहला प्रशन?  हम कौनसा जल पी रहे हैं ?

R.O का पानी, किसी कम्पनी ने अपने उत्पाद बेचने के लिए बिकाऊ मीडिया के साथ मिलकर R.O. की झूठी मनगड़ंत कहानी क्या सुनाई, सारी दुनिया भेडचाल में पागल हो गयी और सबने लगवाया लिया यह सिस्टम. सब अपने आप में एक्सपर्ट बन बैठे की इतने TDS का पानी सही, इतने TDS गलत. RO ये कर देगा RO वो कर देगा. फुल बकवास..

अरे मेरे भाई यह तो सोच लेते, की जब RO नहीं था तब क्या लोग ज्यादा बीमार थे , पिने को शुद्ध पानी नहीं मिलता था. अब कुछ मुर्ख यह तर्क देंगे की अब पानी ज्यादा गन्दा हो गया इसलिए RO की जरुरत पड़ी.. पहली बात तो मेरे महान ज्ञानियों इस बात को समझो की पानी कितना ही गन्दा हो जाए उसके लिए हमारे पास मुफ्त जी हाँ बिलकुल मुफ्त की तकनीक है तो उसे छोड़कर आप सब क्यूँ पागल बने डोल रहे हो.. और अभी भी RO से विश्वास नही टूट रहा हो तो जान लो यह सब बातें..

यह भी जान लो की कल भी यह WHO था जब RO WATER को शुद्ध कहकर बिकवाया था.

आज भी वही WHO है जो उल्टा कह रहा..

तो पहले सच बोला या अब बोला यह आप ही तय करो..

अब बात बोतलबंद पानी की।

वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो बोतलबंद पानी का कारोबार खरबों में पहुंच गया है। शुद्धता और स्वच्छता के नाम पर बोतलों में भरकर बेचा जा रहा पानी भी सेहत के लिए खतरनाक है। यह बात कई अध्ययनों में उभरकर सामने आई है। इसके अलावा बोतलबंद पानी के इस्तेमाल के बाद बड़ी संख्या में बोतल कचरे में तब्दील हो रहे हैं और ये पर्यावरण के लिए गंभीर संकट खड़ा कर रहे हैं।

अमेरिका की एक संस्था है नेचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल। इस संस्था ने अपने अध्ययन के आधार पर यह नतीजा निकाला है कि बोतलबंद पानी और साधारण पानी में कोई खास फर्क नहीं है। मिनरल वाटर के नाम पर बेचे जाने वाले बोतलबंद पानी के बोतलों को बनाने के दौरान एक खास रसायन पैथलेट्स का इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल बोतलों को मुलायम बनाने के लिए किया जाता है। इस रसायन का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधनों, इत्र, खिलौनों आदि के निर्माण में किया जाता है। इसकी वजह से व्यक्ति की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है। बोतलबंद पानी के जरिए यह रसायन लोगों के शरीर के अंदर पहुंच रहा है।

बोतल बंद पानी पर भारत के सबसे बड़े रिसर्च सेण्टर की ये रिपोर्ट भी देखे >>

यह रसायन उस वक्त बोतल के पानी में घुलने लगता है जब बोतल सामान्य से थोड़ा अधिक तापमान पर रखा जाता है। ऐसी स्थिति में बोतल में से खतरनाक रसायन पानी में मिलते हैं और उसे खतरनाक बनाने का काम करते हैं। अध्ययनों में यह भी बताया गया है कि चलती कार में बोतलबंद पानी नहीं पीना चाहिए। क्योंकि कार में बोतल खोलने पर रासायनिक प्रतिक्रियाएं काफी तेजी से होती हैं और पानी अधिक खतरनाक हो जाता है।

बोतल बनाने में एंटीमनी नाम के रसायन का भी इस्तेमाल किया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बोतलबंद पानी जितना पुराना होता जाता है उसमें एंटीमनी की मात्रा उतनी ही बढ़ती जाती है। अगर यह रसायन किसी व्यक्ति की शरीर में जाता है तो उसे जी मचलना, उल्टी और डायरिया जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इससे साफ है कि बोतलबंद पानी शुद्धता और स्वच्छता का दावा चाहे जितना करें लेकिन वे भी लोगों के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं।

बोतलबंद पानी के खतरनाक होने की पुष्टि कैलीफोर्निया के पैसिफिक इंस्टीटयूट के एक अध्ययन से भी होती है। इस संस्थान ने अध्ययन करके यह बताया है कि 1990 से लेकर 2007 के बीच कम से कम एक सौ मौके ऐसे आए जबं बोतलबंद पानी बनाने वाली कंपनियों ने ही अपने उत्पाद को बाजार से हटा लिया। वह भी बगैर उपभोक्ताओं को सूचना दिए। कंपनियों ने ऐसा इसलिए किया कि इन मौकों पर बोतलबंद पानी प्रदूषित था।

इसके अलावा बोतलबंद पानी तैयार करने में भारी मात्रा में जल की बर्बादी हो रही है। एक लीटर बोतलबंद पानी तैयार करने में दो लीटर सामान्य पानी खर्च होता है। यानी एक तरफ तो जल संरक्षण की बात चल रही है और दूसरी तरफ शुद्ध पेयजल तैयार करने के नाम पर पानी की बर्बादी की जा रही है। पानी की बर्बादी शुद्ध पेयजल देने वाली मशीनें भी भारी मात्रा में कर रही हैं। बोतलबंद पानी तैयार करने के नाम पर भूजल का दोहन जमकर किया जा रहा है। इसके बावजूद जो पानी तैयार हो रहा है वह स्वच्छ नहीं है।

हम तो आपको भारतीय संस्कृति और विज्ञान पर आधारित पानी शुद्ध करने का तरीका बता रहे हैं जिसमे न मुझे आपको कोई RO बेचना न ही मुझे आपसे कोई फायदा होगा

शुद्ध पेयजल स्वास्थ्य का मूलाधार है। बचपन में अच्छे पोषण और विकास के लिये शुद्ध पेयजल बिलकुल जरुरी है। अतिसार, दस्त, पीलिया, पोलिओ आदि अनेक रोग अशुद्ध पेयजल से फैलते है। इन रोगों से सभी को नुकसान होता है लेकिन बच्चों का कुछ ज्यादा ही नुकसान होता है। शुद्ध पेयजल से यह सारा नुकसान हम टाल सकते है और दवाओं का खर्चा भी। सामुदायिक पेयजल प्रावधान अच्छा हो तब भी घरेलू सुरक्षा बरतना जरुर है। इसके लिये अनेक पद्धती और तरीके उपलब्ध है।

हमें कौनसा जल पीना चाहिए और कैसे करें उसको शुद्ध  >>

पुराने जमाने से चली आ रही यह तकनीक सफ़ेद सूती कपडा लीजिये (2-4 लेयर्स) जितना गन्दा पानी उसके अनुसार उस पानी को इस कपडे से छानिये, इससे आपके पानी में मोटे कण व् गंदगी समाप्त होगी. अब उस पानी को उबालिए अच्छे से (इससे उसके वायरस कीटाणु इत्यादि समाप्त हो जायेंगे) फिर सामान्य तापमान पर ठंडा होने रख दीजिये. पानी तो वैसे शुद्ध हो चूका है और बिलकुल उपयुक्त है अब पिने के लिए लेकिन आप चाहें तो इसे और अच्छा (मिनरल वाटर) बना सकते हैं. तुलसी के पत्ते पानी में डालकर रखें.  जहाँ भी तुलसी का पौधा होता है, उसके आसपास का 600 फुट का क्षेत्र उससे प्रभावित होता है, जिससे मलेरिया, प्लेग जैसे कीटाणु नष्ट हो जाते हैं. इस पानी को ताम्बे के बर्तन में भरकर रखें. इस पानी को ट्रांसपेरेंट बर्तन में धुप में रखें जिससे पानी में क्रिस्टल्स बनेंगे और पानी की गुणवत्ता बढ़ जाएगी. पानी के बर्तन में सूती कपडे में कोयला या भारतीय देसी गाय के गोबर की जली हुई राख को बांधकर रखें. कार्बन सारा गंद अपने और खिंच लेगा. क्या आप जानते हो की जो water purifier सिस्टम आपके घर में लगा हुआ है उसमे भी यही कोयले की तकनीक इस्तेमाल की जाती है ? कृपया अपनी कैंडल को तोड़कर देखिये और जानिये इस सत्य को.. अब अगर आपको शुद्ध पानी चाहिए और बिमारियों से बचना है तो यह कार्य अपने प्रतिदिन के कार्य में जोडीये और स्वस्थ रहिये..


WHO और मुंबई रिसर्च सेंटर की ये रिपोर्ट पढो ! क्यों कई देश लगा चुके है प्रतिबंध !

राजीव भाई दीक्षित आप लोगों से बार – बार कहते थे कि 200 टीडीएस से कम का पानी मत पीजिये । आजकल कुछ मूर्ख डेंटिस्ट भी इसमें शामिल हैं, बिना जाने समझे अपने पेशेंट को बोल देते हैं कि RO का पानी पीजिये । आपके बच्चों के दांत ख़राब हो रहे हैं फ्लोराइड बढ़ा है । जबकि वास्तव में उन डाक्टरों को पता भी नहीं होता कि आखिर RO करता क्या है ? और हम उन मुर्ख डाक्टरों के चक्कर में पड़कर या अपना स्टेट्स समझकर RO लगा लेते हैं ।




वास्तव में विदेशों में पानी की किल्लत है , लेकिन अब उनकी तकनीक ने हमारे भी जल स्रोतों को दूषित कर दिया है । हम जो वारिश का पानी इकठ्ठा करके पूरा साल पीते थे अपनी चावड़ी या कुएँ के जलस्तर सामान्य करने के लिए गाँवों में गहरे तालाब के पानी को सुरक्षित रखते थे हमने भंडारण तो बंद कर दिया, उसकी जगह पृथ्वी से जल का दोहन शुरू कर दिया ।

R.O. का लगातार सेवन बनेगा मौत का कारण :-

चिलचिलाती गर्मी में कुछ मिले ना मिले पर शरीर को पानी जरूर मिलना चाहिए और अगर पानी RO का हो तो क्या बात है परंतु क्या वास्तव में हम RO को शुद्ध पानी मान सकते हैं, जवाब आता है बिल्कुल नहीं और यह जवाब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की तरफ से दिया जा चूका है ।


Also Read: हमें कौनसा जल पीना चाहिए और कैसे करें उसको शुद्ध


विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि इसके लगातार सेवन से हृदय संबंधी विकार, थकान, कमजोरी, मांसपेशियों में ऐंठन, सिरदर्द आदि दुष्प्रभाव पाए गए हैं , यह कई शोधों के बाद पता चला है कि इसकी वजह से कैल्शियम, मैग्नीशियम पानी से पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं जो कि शारीरिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है॥
” राजीव भाई हमेशा सच कहते थे RO पानी की क्वालिटी नहीं मेन्टेन करता है बल्कि आपके जल के भीतर मौजूद मिनिरल को कम कर देता है ।
आपके घर पर जो भी सर्विस इंजिनियर आते हैं , उनसे पूंछिये कि कितने टीडीएस का जल पीना चाहिए तो बोलेंगे 50 टीडीएस का । RO कहाँ लगाना चाहिए तो कहेंगे कि आप लगवाइये हम पड़ोस में लगाकर गए हैं ।

वैज्ञानिकों के अनुसार मानव शरीर 500 टीडीएस तक सहन करने की छमता रखता है परंतु RO में 18 से 25 टीडीएस तक पानी की शुद्धता होती है जो कि बहुत ही हानिकारक है इसके विकल्प में थोड़ी मात्रा में क्लोरीन को रखा जा सकता है, जिसमें लागत भी कम होती है एवं आवश्यक तत्व भी सुरक्षित रहते हैं जिससे मानव शारीरिक विकास अवरूद्ध नहीं होता।

जहां एक तरफ एशिया और यूरोप के कई देश RO पर प्रतिबंध लगा चुके हैं वहीं भारत में RO की मांग लगातार बढ़ती जा रही है और कई विदेशी कंपनियों ने यहां पर अपना बड़ा बाजार बना लिया ।
कई बोतलों का पानी चेक किया किसी में 20 टीडीएस का पानी नहीं मिला । ईश्वर जाने क्या करेगी यह मूर्खों की जमात जो एक किसी अच्छे रसायन शास्त्री से जानकारी लेने की बजाय 10 वीं पास RO इंजिनियर से सलाह लेकर अपने परिवार का जीवन दाँव पर लगा रहे हैं ।

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