👉🏽 वही लोग दुनिया का नेतृत्व करेंगे 
जो लोग परिवर्तन के बाद बदलेंगे - वे सिर्फ बचेंगे, 
जो लोग परिवर्तन के साथ साथ बदलेंगे - वो सफल होंगे, 
और 
जो लोग परिवर्तन का कारण बनेंगे - वो दुनिया का नेतृत्व करेंगे ।


➡️ (1) "समस्या" - आध्यात्म और ग्रंथों के बारे में गलत घारण कि इनको बुढ़ापे में ही सुनना चाहिए ?
✍ "समाधान" - मित्रों सबसे पहले अपने मन से आध्यात्म का भ्रम दूर करिये, कि आदमी आध्यात्म की ओर 60 साल बाद ही जाता है, हमारे अंदर यह एक बहुत ही बड़ी ग़लतफ़हमी है, कि जब हम बूढे हो जायेंगे तभी आध्यात्म की तरफ जायेंगे, आजकल अधिकतर आध्यात्म गुरु, मोटिवेशनल गुरु बन गए हैं, क्योँकि उन्हें भी पता चल गया है कि "अगर परिवर्तन के साथ नहीं बदलेंगे तो खत्म हो जायेंगे". मित्रों फिर जब टीवी में थोड़ी सी मेहनत से ही फ्री में कोई ज्ञान मिल रहा है तो पैसे दे कर लेना जरुरी है क्या ?

➡️ (2) "समस्या" - जिन ग्रंथों की शिक्षा हमें बचपन में ही स्कूल, कॉलेज में मिल जानी चाहिए, उस वक़्त हमारे ऊपर हमारे माता पिता और स्कूल के दबाव (या यूँ कहें कि system का दबाव) में सिर्फ और सिर्फ "नौकरी किसी भी तरह लग जाने" वाला ज्ञान ही दिया गया. स्कूल, कॉलेज में जिंदगी जीने की कला न सिखाकर, दबाव में कैसे काम करते हैं या दबाव से कैसे जल्दी से जल्दी निकलना चाहिए वाले ज्ञान का कहीं कोई जिक्र नहीं होता.
✍ "समाधान" - हमारी सरकारों को इस ओर तुरंत ध्यान देने की जरुरत है. क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि हमें इन सारे ग्रंथों को स्कूल में "आज के परिवेश के उदाहरणों से लिंक कर" पढ़ाया जाये जिससे हम रिटायर होते होते इन सबको अपनी असली जिंदगी में उतार पायें और बचपन से ही सकारात्मक रहते हुए हर परिस्थिति का हंसते हंसते सामना करें. सब कुछ लिखा है इन ग्रंथो में, हर परिस्थिति से निपटने के तरीके बताये गए हैं इनमें, जिन्होंने इनको समझा, उन्होंने अपनी जिंदगी को बहुत ही आसान कर लिया.

➡️ (3) "समस्या" - एक बार स्कूल से कॉलेज, कॉलेज से बिज़नेस या जॉब, उसके बाद शादी, बच्चे, फॅमिली, बच्चों की शादी, बच्चों का settlement, बुढ़ापे में रहने, खाने, पेंशन की चिंता इत्यादि में इतना उलझ जाते हैं कि अपने को अपग्रेड करने का समय ही नहीं मिलता. 
यहाँ पर दो समस्याएं है -
▶️ 
(i) नौकरी, फॅमिली के दबाव में हमें समय ही नहीं मिलता ?
▶️ 
(ii) हम सही मार्गदर्शन करने वाला गुरु कहाँ से ढूँडें ? 
✍ "समाधान" - मित्रों काम बहुत ही आसान है पर लगेंगे कम से कम 20 से 25 दिन. हमने करना क्या है :-
टीवी में आध्यत्मिक चैनल को सर्च कीजिये, उसमें आने वाले प्रोग्राम को 10 से 15 मिनट तक सुनिये. अगर उसमें कोई मोटिवेशन की बात बोली जा रही है तो उस चैनल का नाम और समय नोट कर लीजिये. फिर चैनल बदल बदल कर चेक करते रहिये और इस प्रक्रिया को दोहराते रहिये. इस तरह हमें करीब करीब सभी मोटिवेशनल गुरुओं की क्लास के बारे में पता चल जायेगा. अब रोज़, जी हाँ रोज़ अपने समय के अनुसार उनको सुनना है वैसे ही जैसे हम स्कूल में जा कर क्लास attend करते थे. एक बात और, हम अपने साथ कॉपी एवं पेन भी रख सकते हैं, जो भी अच्छा लगे उसे लिखते रहें, अपने notes बनाते रहें. मित्रों ये तरीका हमें फ्री में कहीं से कहीं पहुंचा देगा, मान कर चलिए. मित्रों किसी भी हाल में "इस क्रिया को टाइम पास न समझें", ये आपको जल्द से जल्द बुलंदियों तक पहुँचाने की ताकत रखता है.  
यहाँ समस्या ये है कि घर के बुजुर्ग तो घर में इस तरह के चैनल देखते हैं पर हम युवा सोचते हैं कि ये सिर्फ बुढ़ापे में सुनने की चीज है. यहीं पर गलत साबित हो जाते हैं हम लोग. मित्रों ध्यान रहे काम आसान जरूर है पर 20 से 25 दिन तो करना ही पड़ेगा, एक बात और, सुनते समय बिलकुल भी बातचीत मत करिये, वैसे ही बैठना है जैसे हम सिनेमा घर में शांति के साथ बैठ कर कोई पिक्चर देखते हैं.
मित्रों उपरोक्त बातों में जरा भी चूक हुई तो समझिये हम अपनी PROGRESS और SUCCESS को उतना DELAY कर रहे हैं. हमारे लिए 1-1 दिन कीमती है. बिलकुल भी समय व्यर्थ न करें. 

➡️ (4) "समस्या" - इस काम को करते समय हमें एक बहुत गंभीर समस्या आती है, जैसे कि जब हम चुपचाप बैठकर शांति से ये मोटिवेशनल ज्ञान सुन रहे होते हैं तो हमारे घर वाले (वाइफ, बच्चे या और कोई) कहते हैं कि "ये क्या फालतू के प्रवचन सुन रहे हो ?"
✍ "समाधान" - मित्रों तब हमें उनको समझाना होगा कि अगर ये नहीं सुना तो :
▶️ 
(i) बाहर किसी मोटिवेटर को लाखों रुपये फीस देकर सुनना होगा और यहाँ तो यह फ्री में मिल रहा है.

▶️ (ii) इसको सुनकर हमें जो प्रेरणा मिलेगी उससे हमारी तनख़ा कई गुना बड़ जाएगी. 
मित्रों, "जिंदगी में अगर बड़ना है तो तरीके बदलो ईरादे नहीं". याद रखिये आचार्य चाणक्य ने साफ़ साफ़ कहा है "दूसरों की गलतियों से सीखो, हर चीज अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने को हमारी आयु कम पड़ेगी".

👉🏽 मित्रों "परिवर्तन ब्रह्माण्ड का नियम है" इससे कोई बच नहीं सकता. पर "हम परिवर्तन की किस श्रेणी में अपने को रखना चाहते हैं" ये तो हम सभी को अकेले, शांत मन से, गहन चिन्तन करते हुए सोचना होगा और अब समय आ गया है हम गंभीरता से इन सब चोजों पर चिंतन करें. फिर भी हम सब या तो परिवर्तन का कारण बने या फिर परिवर्तन के साथ बदलें. परिवर्तन के बाद बदल कर कुछ हाथ नहीं आने वाला. हमें किसी भी हालात में "परिवर्तन के साथ साथ खुद तथा अपने आस पास वालों को बदलना ही होगा." 

मित्रों निम्नलिखित बातें पहले से होती आई हैं, आज भी हो रही हैं और आगे भी होती रहेंगी, ये बात ध्यान रहे :-

👉🏽 जो लोग परिवर्तन के बाद बदलेंगे - वे सिर्फ बचेंगे,
जो लोग परिवर्तन के साथ साथ बदलेंगे - वो सफल होंगे,
और 
जो लोग परिवर्तन का कारण बनेगे - वो दुनिया का नेतृत्व करेंगे ।

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